छांदोग्य उपनिषद, सामवेद का एक अभिन्न अंग, प्राचीन भारत के ऋषि-मुनियों द्वारा प्रतिपादित गहन दार्शनिक विचारों का अनुपम संग्रह है। यह उपनिषद ब्रह्म, आत्मा, जगत और मोक्ष जैसे गूढ़ विषयों पर प्रकाश डालता है। इसमें विभिन्न कथाओं, संवादों और उपदेशों के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया गया है।
१. परिचय:
छांदोग्य उपनिषद, जैसा कि नाम से स्पष्ट है, सामवेद से संबंधित है। यह उपनिषदों में सबसे महत्वपूर्ण और प्राचीनतम उपनिषदों में से एक माना जाता है। इसमें आठ अध्याय हैं, जिन्हें 'प्रपाठक' कहा जाता है। प्रत्येक प्रपाठक में कई खंड हैं, जिनमें विभिन्न विषयों पर चर्चा की गई है।
२. मुख्य विषय:
छांदोग्य उपनिषद के मुख्य विषयों में निम्नलिखित शामिल हैं:
* ब्रह्म: उपनिषद ब्रह्म को सृष्टि का कारण और आधार मानता है। ब्रह्म सर्वव्यापी, सर्वज्ञ और अनंत है।
* आत्मा: आत्मा को ब्रह्म का अंश माना गया है। आत्मा अमर और अविनाशी है।
* जगत: जगत को ब्रह्म की अभिव्यक्ति माना गया है। जगत मिथ्या नहीं, बल्कि वास्तविक है, परन्तु यह परिवर्तनशील है।
* मोक्ष: मोक्ष को आत्मा और ब्रह्म के एकत्व का ज्ञान प्राप्त करना माना गया है। मोक्ष अज्ञान और बंधन से मुक्ति है।
३. महत्वपूर्ण उपदेश और कथाएँ:
छांदोग्य उपनिषद में अनेक महत्वपूर्ण उपदेश और कथाएँ हैं, जो आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति में सहायक हैं। उनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:
* तत्त्वमसि (वह तू है): यह उपनिषद का महावाक्य है, जो आत्मा और ब्रह्म की एकता का प्रतिपादन करता है। यह वाक्य श्वेतकेतु और उसके पिता उद्दालक के संवाद में आता है। उद्दालक अपने पुत्र को विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से समझाते हैं कि आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं।
* मूल श्लोक: "तत् त्वम् असि" (छांदोग्य उपनिषद ६.८.७)
* अर्थ: "वह तू है।"
* शांकर भाष्य: आचार्य शंकर अपने भाष्य में इस महावाक्य की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि "तत्" शब्द ब्रह्म का वाचक है, "त्वम्" शब्द आत्मा का वाचक है, और "असि" शब्द दोनों की एकता का बोधक है। वे इसे अद्वैत वेदांत का मूल सिद्धांत मानते हैं।
* श्वेतकेतु की कथा: श्वेतकेतु आरुणि के पुत्र थे। वे अपने पिता से ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के लिए उत्सुक थे। उनके पिता ने उन्हें 'तत्त्वमसि' का उपदेश दिया।
* उद्दालक की कथा: उद्दालक एक प्रसिद्ध ऋषि थे। उन्होंने अपने पुत्र श्वेतकेतु को ब्रह्मज्ञान का उपदेश दिया।
* सत्यकाम जाबाल की कथा: सत्यकाम जाबाल एक गरीब महिला के पुत्र थे। वे अपने गुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के लिए गए। उनके गुरु ने उनसे उनकी जाति के बारे में पूछा। सत्यकाम ने अपनी माता से अपनी जाति के बारे में पूछा। उनकी माता ने बताया कि वह दासी हैं और उन्हें अपने पिता के बारे में नहीं पता। सत्यकाम ने अपने गुरु को यह बात बताई। उनके गुरु ने उनकी सत्यवादिता से प्रसन्न होकर उन्हें ब्रह्मज्ञान का उपदेश दिया। यह कथा सत्य और निष्कपटता के महत्व को दर्शाती है।
* वायु और आदित्य की उपासना: इस उपनिषद में वायु और आदित्य की उपासना का भी वर्णन है। वायु को प्राण और आदित्य को तेज का प्रतीक माना गया है।
* ओंकार की उपासना: ओंकार को ब्रह्म का प्रतीक माना गया है। इस उपनिषद में ओंकार की उपासना का भी वर्णन है।
* मूल श्लोक: "ओमित्येतदक्षरमुद्गीथमुपासीत" (छांदोग्य उपनिषद १.१.१)
* अर्थ: "ओम इस अक्षर को उद्गीथ के रूप में उपासना करो।"
* शांकर भाष्य: आचार्य शंकर ओंकार को अनाहत नाद ब्रह्म का प्रतीक मानते हैं। उनके अनुसार, ओंकार की उपासना से साधक ब्रह्म का साक्षात्कार कर सकता है।
* पंचकोश विद्या: यह विद्या आत्मा के पांच कोशों - अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय कोशों का वर्णन करती है। यह आत्म-अनुसंधान के एक महत्वपूर्ण मार्ग को दर्शाती है।
* दहर विद्या: यह विद्या हृदय के भीतर स्थित सूक्ष्म आकाश (दहर) में ब्रह्म की उपासना का वर्णन करती है। यह सूक्ष्म जगत और बृह्मांड के संबंध को समझने की एक विधि है।
४. छांदोग्य उपनिषद का महत्व:
छांदोग्य उपनिषद भारतीय दर्शन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह उपनिषद अद्वैत वेदांत का मूल आधार है। इस उपनिषद में ब्रह्म, आत्मा और जगत के संबंध में जो विचार प्रस्तुत किए गए हैं, वे भारतीय दर्शन के विकास में मील का पत्थर साबित हुए हैं। इसने शंकराचार्य जैसे महान दार्शनिकों को बहुत प्रभावित किया।
५. कुछ प्रमुख श्लोकों की व्याख्या:
* "अहं ब्रह्मास्मि" (मैं ब्रह्म हूँ): यह महावाक्य बृहदारण्यक उपनिषद में आता है, परन्तु इसका भाव छांदोग्य उपनिषद के 'तत्त्वमसि' से मिलता जुलता है। यह आत्मा और ब्रह्म की एकता का उद्घोष है।
* शांकर भाष्य: आचार्य शंकर इसे अद्वैत वेदांत का सार मानते हैं। उनके अनुसार, जब आत्मा को यह ज्ञान हो जाता है कि वह ब्रह्म से भिन्न नहीं है, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
* "सर्वं खल्विदं ब्रह्म" (यह सब कुछ निश्चय ही ब्रह्म है): यह श्लोक जगत की ब्रह्ममयता का प्रतिपादन करता है। यह बताता है कि जगत मिथ्या नहीं है, बल्कि ब्रह्म की अभिव्यक्ति है।
* रामानुज भाष्य: रामानुजाचार्य, जो विशिष्टाद्वैत वेदांत के प्रतिपादक हैं, इस श्लोक की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि जगत ब्रह्म का शरीर है और ब्रह्म जगत का आत्मा है। उनके अनुसार, जगत ब्रह्म से भिन्न नहीं है, बल्कि ब्रह्म पर आश्रित है।
६. उपनिषद का प्रभाव:
छांदोग्य उपनिषद का भारतीय संस्कृति और दर्शन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इसने विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं को जन्म दिया और आध्यात्मिक चिंतन को नई दिशा प्रदान की। इस उपनिषद का अध्ययन आज भी आध्यात्मिक जिज्ञासुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
७. निष्कर्ष:
छांदोग्य उपनिषद एक गहन दार्शनिक ग्रंथ है, जो ब्रह्म, आत्मा और जगत के रहस्यों को उद्घाटित करता है। इसमें निहित 'तत्त्वमसि' जैसे महावाक्य अद्वैत वेदांत के मूल सिद्धांतों का प्रतिपादन करते हैं। यह उपनिषद भारतीय दर्शन और आध्यात्मिक चिंतन के विकास में एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। इसका अध्ययन हमें अपने वास्तविक स्वरूप और ब्रह्म के साथ अपने संबंध को समझने में मदद करता है।
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