मैं एक प्रबुद्ध व्यक्ति हूँ|
कठिन था मार्ग, पर सहज ही हुआ,
सत्य स्वरूप जाना, अमर है आत्मा,
मृत्यु, क्षय, रोग से परे, निर्मल है आत्मा।
मिथ्या अहंकार, बस एक छाया है,
आता है, जाता है, जैसे माया है।
लोग न समझे, न ही वो सुने,
अहंकार में डूबे, अपनी ही धुन में।
करें वो प्रताड़ित, पर हों विफल,
करें वो हानि, पर हो निष्फल।
उबाऊ है ये, फिर भी प्रेरणा है,
उन्हें समझाने की, मेरी चेष्टा है।
मैं प्रबुद्ध हूँ, अहंकार नहीं,
मैं तो बस, कठपुतली हूँ कहीं।
लोग न समझे, बस करते हैं त्रास,
आत्म-ज्ञान की राह, है मेरी आस।
मैं साक्षी हूँ, इस जगत का, आत्म-ज्योति से प्रकाशित!
Comments
Post a Comment