"उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत् कवयो वदन्ति॥"
(अर्थ: उठो, जागो, श्रेष्ठ पुरुषों को प्राप्त करके ज्ञान प्राप्त करो। कवियों का कहना है कि यह मार्ग (आत्मा का मार्ग) छुरे की धार के समान तीक्ष्ण है, जिस पर चलना कठिन है।)
यह मंत्र कठोपनिषद के सार को संक्षेप में प्रस्तुत करता है। यह हमें अज्ञान के अंधकार से उठने और आत्मज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है, भले ही वह कितना ही कठिन क्यों न हो।
प्रस्तावना:
कठोपनिषद कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा का एक महत्वपूर्ण उपनिषद है। इसमें यम (मृत्यु के देवता) और नचिकेता के बीच संवाद का वर्णन है। नचिकेता, एक जिज्ञासु बालक, यम से मृत्यु के रहस्य और आत्मा के स्वरूप के बारे में प्रश्न पूछता है। यम उसे पहले टालने की कोशिश करते हैं, लेकिन नचिकेता की दृढ़ता और वैराग्य देखकर उन्हें अंततः उसे आत्मज्ञान का उपदेश देना पड़ता है।
विषय-वस्तु:
कठोपनिषद का मुख्य विषय आत्मा की अमरता और ब्रह्म के साथ उसकी एकता का प्रतिपादन करना है। यह उपनिषद हमें सिखाता है कि आत्मा न तो जन्म लेती है और न ही मरती है। यह शरीर, मन और बुद्धि से परे है। यह उपनिषद हमें कर्म, ज्ञान और भक्ति के मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग भी बताता है।
मुख्य बिन्दुओं का विवेचन:
1. नचिकेता का वैराग्य:
कठोपनिषद की शुरुआत नचिकेता के वैराग्य से होती है। अपने पिता द्वारा सब कुछ दान कर दिए जाने के बाद, नचिकेता को लगता है कि उसे भी यम को दान कर दिया गया है। वह बिना किसी भय के यमलोक जाता है और यम से आत्मज्ञान का प्रश्न पूछता है।
2. यम का उपदेश:
यम नचिकेता को पहले सांसारिक भोगों का प्रलोभन देकर टालने की कोशिश करते हैं, लेकिन नचिकेता अपने निश्चय से नहीं डिगता। अंततः यम उसे आत्मा के अमर स्वरूप का ज्ञान देते हैं।
3. आत्मा का स्वरूप:
यम नचिकेता को बताते हैं कि आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत और अविनाशी है। यह शरीर के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होती। आत्मा ही ब्रह्म का अंश है, और दोनों में कोई वास्तविक भेद नहीं है।
4. मोक्ष का मार्ग:
यम नचिकेता को मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग बताते हैं। वे कहते हैं कि मोक्ष न तो कर्मों से प्राप्त होता है, न ही धन-दौलत से। मोक्ष केवल आत्मज्ञान से प्राप्त होता है। जो व्यक्ति अपने आत्मा को जान लेता है, वह मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।
5. श्रेय और प्रेय का विवेचन:
यम नचिकेता को श्रेय (कल्याणकारी मार्ग) और प्रेय (सुखदायक मार्ग) के बीच का अंतर भी बताते हैं। वे कहते हैं कि प्रेय क्षणिक सुख देता है, जबकि श्रेय स्थायी कल्याण प्रदान करता है। हमें प्रेय को छोड़कर श्रेय का मार्ग अपनाना चाहिए।
कुछ प्रमुख मंत्रों की व्याख्या:
* "अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन् प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया॥" (मैं अजन्मा, अविनाशी आत्मा और भूतों का ईश्वर होते हुए भी अपनी प्रकृति को अधीन करके अपनी माया से प्रकट होता हूँ।) यह श्लोक भगवान के अवतार लेने के रहस्य को स्पष्ट करता है।
* "न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वाऽभविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥" (आत्मा न तो जन्म लेती है, न मरती है। यह कभी नहीं थी, ऐसा नहीं है, और न ही यह होकर फिर नहीं रहेगी। यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के नष्ट होने पर भी यह नष्ट नहीं होती।) यह मंत्र आत्मा की अमरता का प्रतिपादन करता है।
* "उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत् कवयो वदन्ति॥" (उठो, जागो, श्रेष्ठ पुरुषों को प्राप्त करके ज्ञान प्राप्त करो। कवियों का कहना है कि यह मार्ग (आत्मा का मार्ग) छुरे की धार के समान तीक्ष्ण है, जिस पर चलना कठिन है।) यह मंत्र हमें आत्मज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
प्रसिद्ध व्यक्तियों की टिप्पणियाँ:
* स्वामी विवेकानंद: स्वामी विवेकानंद कठोपनिषद को एक अत्यंत महत्वपूर्ण उपनिषद मानते थे। उन्होंने नचिकेता के वैराग्य और यम के उपदेशों की बड़ी प्रशंसा की है।
* शंकराचार्य: आदि शंकराचार्य ने कठोपनिषद पर अपनी भाष्य में अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को विस्तार से समझाया है। उन्होंने आत्मा और ब्रह्म की एकता पर बल दिया है।
उपसंहार:
कठोपनिषद एक ऐसा उपनिषद है जो हमें जीवन के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान प्रदान करता है। यह हमें आत्मा की अमरता, ब्रह्म के स्वरूप, मोक्ष के मार्ग, और श्रेय और प्रेय के बीच के अंतर को समझने में मदद करता है। इस उपनिषद का अध्ययन करके हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
कुछ प्रेरक उद्धरण:
* "मृत्यु से मत डरो, क्योंकि मृत्यु तो जीवन का ही एक अंग है।"
* "अपने आप को जानो, यही सबसे बड़ा ज्ञान है।"
* "जो व्यक्ति अपने आत्मा को जान लेता है, वह अमर हो जाता है।"
अंतिम उद्धरण:
"ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः"
(अर्थ: शांति, शांति, शांति।)
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