"तस्मै स होवाच यथा कामं प्रश्नान् पृच्छत।"
(अर्थ: उनसे (पिप्पलाद ऋषि) ने कहा, "अपनी इच्छा के अनुसार प्रश्न पूछो।")
यह वाक्य प्रश्नोपनिषद की प्रस्तावना है, जिसमें ऋषि पिप्पलाद अपने जिज्ञासु शिष्यों को प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। यह उपनिषद ज्ञान की खोज और जिज्ञासा की शक्ति पर बल देता है।
प्रस्तावना:
प्रश्न उपनिषद, अथर्ववेद से संबंधित एक महत्वपूर्ण उपनिषद है। इसमें छह ऋषियों - सुकेशा, सत्यकाम, गार्गी, इन्द्रद्युम्न, रैवत और कबन्धी - द्वारा ऋषि पिप्पलाद से पूछे गए छह प्रश्नों और उनके उत्तरों का वर्णन है। ये प्रश्न ब्रह्मांड की उत्पत्ति, प्राण, आत्मा, स्वप्न, ओंकार और पुरुष के स्वरूप से संबंधित हैं।
विषय-वस्तु:
प्रश्नोपनिषद का मुख्य विषय ब्रह्म और आत्मा के स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना है। यह उपनिषद हमें बताता है कि यह संसार ब्रह्म से उत्पन्न हुआ है और उसी में स्थित है। आत्मा भी ब्रह्म का ही अंश है। इस ज्ञान को प्राप्त करके मनुष्य मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
मुख्य बिन्दुओं का विवेचन:
1. सृष्टि का उद्गम:
पहला प्रश्न सुकेशा भारद्वाज ने पूछा कि यह सृष्टि कैसे उत्पन्न हुई? ऋषि पिप्पलाद ने उत्तर दिया कि प्रजापति ने तपस्या करके मिथुन (जोड़ा) उत्पन्न किया - 'रयि' (प्राण) और 'प्राण'। इन्हीं से सारी सृष्टि उत्पन्न हुई।
2. प्राण की महिमा:
दूसरा प्रश्न सत्यकाम जाबाल ने प्राण के बारे में पूछा। ऋषि ने प्राण की श्रेष्ठता का वर्णन करते हुए बताया कि प्राण ही पंचभूतों, इंद्रियों और मन का आधार है। यह आत्मा का रक्षक है और शरीर को चलाता है।
3. आत्मा का स्वरूप:
तीसरा प्रश्न सौर्य्यायणी गार्गी ने आत्मा के बारे में पूछा। ऋषि ने बताया कि आत्मा ही श्रोत्र, त्वचा, चक्षु, जिह्वा और घ्राण आदि इंद्रियों का नियंता है। यह मन, बुद्धि और चित्त से भी परे है। यह अज, अमर और अविनाशी है।
4. स्वप्न की अवस्था:
चौथा प्रश्न इन्द्रद्युम्न वैदर्भि ने स्वप्न के बारे में पूछा। ऋषि ने बताया कि स्वप्न में जीव अपनी इंद्रियों से अलग होकर अपने आत्मा में लीन हो जाता है। वहाँ वह अपने कर्मों के अनुसार अलग-अलग अनुभव करता है।
5. ओंकार का महत्व:
पाँचवाँ प्रश्न रैवत ने ओंकार के बारे में पूछा। ऋषि ने बताया कि ओंकार ही परब्रह्म है। इसके जप से मनुष्य परम गति को प्राप्त करता है। यह अविद्या को नष्ट करने वाला है।
6. षोडश कला पुरुष:
छठा प्रश्न कबन्धिन कात्यायन ने पुरुष के विषय में पूछा। ऋषि ने बताया कि पुरुष में सोलह कलाएँ होती हैं। यह पुरुष ही सृष्टि का आधार है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।
कुछ प्रमुख मंत्रों की व्याख्या:
* "प्रजापतिर्ह वा इदं अग्र आसीत्। स कामयत बहु स्यां प्रजायेयेति। स तपोऽतप्यत। स मिथुनमउत्पादयत रयिं च प्राणं च।" (प्रजापति ही यह सब पहले थे। उन्होंने कामना की कि मैं बहुत हो जाऊँ, उत्पन्न होऊँ। उन्होंने तप किया। उन्होंने एक जोड़ा उत्पन्न किया - रयि और प्राण।) यह मंत्र सृष्टि के आरंभ का वर्णन करता है।
* "यस्मिन् द्यावापृथिवी च प्रतिष्ठितौ यस्मिंश्चान्तर्हितं मनः। सोऽयं आत्मा विज्ञेयो यं सर्वाणि भूतानि अर्पिता।" (जिसमें द्युलोक और पृथ्वी प्रतिष्ठित हैं, जिसमें मन भी अंतर्हित है, वह यह आत्मा जानने योग्य है जिसमें सभी भूत अर्पित हैं।) यह मंत्र आत्मा के स्वरूप का वर्णन करता है।
* "ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म।" (ओंकार एक अक्षर वाला ब्रह्म है।) यह मंत्र ओंकार के महत्व को बताता है।
प्रसिद्ध व्यक्तियों की टिप्पणियाँ:
* शंकराचार्य: आदि शंकराचार्य ने प्रश्नोपनिषद पर अपनी भाष्य में अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को विस्तार से समझाया है। उन्होंने आत्मा और ब्रह्म की एकता पर बल दिया है।
* विवेकानंद: स्वामी विवेकानंद ने प्रश्नोपनिषद को एक महत्वपूर्ण उपनिषद मानते थे। उन्होंने इसके ज्ञान को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास किया।
उपसंहार:
प्रश्नोपनिषद एक ऐसा उपनिषद है जो हमें सृष्टि, प्राण, आत्मा, स्वप्न, ओंकार और पुरुष के रहस्यों का ज्ञान प्रदान करता है। यह उपनिषद हमें ब्रह्म और आत्मा की एकता का अनुभव करने के लिए प्रेरित करता है। इसका अध्ययन करके हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
कुछ प्रेरक उद्धरण:
* "ज्ञान से बड़ा कोई धन नहीं है।"
* "अपने आप को जानो, यही सबसे बड़ा ज्ञान है।"
* "जो जानता है, वही मुक्त है।"
अंतिम उद्धरण:
"ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः"
(अर्थ: शांति, शांति, शांति।)
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