"सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो ह्ययं देवयानः।"
(अर्थ: सत्य ही जीतता है, असत्य नहीं। सत्य से ही वह मार्ग विस्तृत होता है, जो देवयान कहलाता है।)
यह महावाक्य मुण्डकोपनिषद का मुकुट है, जो भारत के राष्ट्रीय आदर्श वाक्य के रूप में प्रतिष्ठित है। यह उपनिषद सत्य की शक्ति और उसके महत्व पर बल देता है।
प्रस्तावना:
मुण्डकोपनिषद, अथर्ववेद का एक महत्वपूर्ण उपनिषद है। इसमें ब्रह्मज्ञान और आत्मा के स्वरूप का वर्णन है। इसमें तीन मुण्डक (खंड) हैं, जिनमें प्रत्येक में दो-दो खंड हैं। यह उपनिषद हमें बताता है कि ब्रह्म ही परम सत्य है और उसी से यह जगत उत्पन्न हुआ है। आत्मा भी ब्रह्म का ही अंश है, और इस ज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
विषय-वस्तु:
मुण्डकोपनिषद का मुख्य विषय परा और अपरा विद्याओं का विवेचन करते हुए ब्रह्मज्ञान की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करना है। यह उपनिषद हमें सिखाता है कि संसार की अनित्यता को समझकर ब्रह्म के नित्य स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना ही जीवन का परम लक्ष्य है।
मुख्य बिन्दुओं का विवेचन:
1. परा और अपरा विद्या:
मुण्डकोपनिषद में दो प्रकार की विद्याओं का वर्णन है - अपरा विद्या और परा विद्या। अपरा विद्या में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिष आदि शामिल हैं। ये सांसारिक ज्ञान प्रदान करती हैं। परा विद्या वह है जिससे अक्षर ब्रह्म का ज्ञान होता है, जो अविनाशी और परम है।
2. ब्रह्म का स्वरूप:
मुण्डकोपनिषद ब्रह्म को जगत का कारण और आधार बताता है। ब्रह्म अज, अमर, अविनाशी, सर्वव्यापी और सर्वज्ञ है। वह निराकार, निर्गुण और सगुण दोनों रूपों में विद्यमान है। उसी से यह सारा जगत उत्पन्न हुआ है और उसी में स्थित है।
3. आत्मा का स्वरूप:
यह उपनिषद आत्मा को ब्रह्म का अंश बताता है। आत्मा अज, अमर और अविनाशी है। यह शरीर, मन और बुद्धि से परे है। जब मनुष्य इस सत्य का अनुभव कर लेता है, तो वह मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।
4. मोक्ष का मार्ग:
मुण्डकोपनिषद मोक्ष प्राप्त करने के लिए ब्रह्मज्ञान को आवश्यक बताता है। यह उपनिषद हमें सिखाता है कि हमें संसार की अनित्यता को समझकर ब्रह्म के नित्य स्वरूप का चिंतन करना चाहिए। इसके साथ-साथ हमें निष्काम कर्म करना चाहिए और ईश्वर के प्रति समर्पित रहना चाहिए।
5. 'सत्यमेव जयते' का महत्व:
मुण्डकोपनिषद का प्रसिद्ध वाक्य "सत्यमेव जयते" हमें सत्य की शक्ति और उसके महत्व के बारे में बताता है। यह वाक्य हमें सिखाता है कि हमें हमेशा सत्य का मार्ग अपनाना चाहिए, क्योंकि अंत में सत्य की ही विजय होती है।
कुछ प्रमुख मंत्रों की व्याख्या:
* "कस्मिन्नु भगवो विज्ञाते सर्वमिदं विज्ञातं भवति।" (हे भगवान्, किसके जानने से यह सब कुछ जाना जाता है?) यह प्रश्न हमें ब्रह्मज्ञान की महत्ता के बारे में बताता है।
* "यथा सुदीप्तात् पावकाद्विस्फुलिङ्गाः सहस्रशः प्रभवन्ति सरूपाः। तथाक्षराद्विविधाः सोम्य भावाः प्रजायन्ते तत्र चैवापियन्ति॥" (जैसे प्रज्वलित अग्नि से हजारों चिंगारियाँ निकलती हैं और उसी रूप में वापस अग्नि में मिल जाती हैं, वैसे ही अक्षर ब्रह्म से यह विभिन्न भाव उत्पन्न होते हैं और उसी में लीन हो जाते हैं।) यह मंत्र ब्रह्म और जगत के संबंध को स्पष्ट करता है।
* "सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो ह्ययं देवयानः।" (सत्य ही जीतता है, असत्य नहीं। सत्य से ही वह मार्ग विस्तृत होता है, जो देवयान कहलाता है।) यह मंत्र हमें सत्य की शक्ति और उसके महत्व के बारे में बताता है।
प्रसिद्ध व्यक्तियों की टिप्पणियाँ:
* शंकराचार्य: आदि शंकराचार्य ने मुण्डकोपनिषद पर अपनी भाष्य में अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को बड़ी ही स्पष्टता से समझाया है। उन्होंने ब्रह्म और आत्मा की एकता पर बल दिया है।
* विवेकानंद: स्वामी विवेकानंद मुण्डकोपनिषद को एक महत्वपूर्ण उपनिषद मानते थे। उन्होंने "सत्यमेव जयते" के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया।
उपसंहार:
मुण्डकोपनिषद एक ऐसा उपनिषद है जो हमें ब्रह्मज्ञान और आत्मा के स्वरूप का ज्ञान प्रदान करता है। यह हमें सिखाता है कि हमें संसार की अनित्यता को समझकर ब्रह्म के नित्य स्वरूप का चिंतन करना चाहिए। "सत्यमेव जयते" का महावाक्य हमें सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। इस उपनिषद का अध्ययन करके हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
कुछ प्रेरक उद्धरण:
* "ज्ञान से बढ़कर कोई धन नहीं है।"
* "अपने आप को जानो, यही सबसे बड़ा ज्ञान है।"
* "सत्य ही ईश्वर है।"
अंतिम उद्धरण:
"ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः"
(अर्थ: शांति, शांति, शांति।)
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